एक जंगल है
एक जंगल है
आजकल देश विदेश से
लोग बाघ देखने आते है.
कहते है जंगल में
आदिवासीयोंके देवता रहते थे
ताडोबा कहते थे उन्हे
युगोंसे करते आये पुजा
साल में एक बार जत्रा भी लगाते
मिलते-खाते-पिते
आनंद-हर्सोल्हास करते.
एक दिन अचानक यकायक
‘बाघ’ के सुरक्षा का कारन देकर
बंद कर दी जत्रा
खदेड दिया उन आदिवासीयोंको
वहांसे.
कई साल हो गये
जत्रा नही, ताडोबा का दर्शन नही
अब तो ताडोबा भी वहां है के नही
किसे पता !
अगर वह वही होगा तो-
शायद ताडोबासे बाघ ही पुंछते होंगे-
”कहां गये वो लोग….जो तुझे पुजते थे !”
॰॰॰॰
एक और जंगल है
यहां एक उंची पहाडी है
पेड पत्तो झाडीसे लदी हुई
कहते है यहां
आदिवासीयोंके ठाकूर देव बसे है
इस कारन आदिवासी
सदीयोंसे यहां आते है
हरसाल
उत्सव मनाते…नाचते…गाते
जत्रा भी होती है
रातभर रेलां भी होता है
सुना है अब यह भी पहाडी
धीरे धीरे खुदाई कर मिट जाएगी
क्यों की,
यहां से लोहा निकालकर
विकास की गंगा बहाई जाएगी
ऐसा कहते है.
तब ठाकूर देव का घर भी उजड जाएगा!
कहते है
इस साल सीएसआर की फंड से कुछ
और माहोल था.
शायद अगले साल-
ठाकूर देव को पहाडी से उतारकर
नीचे भव्य मंदिर होगा
साथ मे धरमशाला-डीजे के साथ नाच गाना
और बहुत कुछ मिलेगा
ऐसा कुछ लोग कह रहे थे.
अगले साल …..और फिर
उसके अगले साल..
धुल- मिट्टी
शायद शेष बचा हुआ पहाड
उजडे हुए जंगल के साथ
ठाकूर देव मिलने आयेगे हमसे
तब हमारे गांव…हमारी खेती
हमारे चेहरे सब बदले होंगे
शायद धुल मिट्टी की चादर ओढे होंगे.
चलो
जंगल -पानी- गांव
बचानेके लिए.
शायद
शेष बाकी बची हुई पहाडीयां -जंगल-बहता पानी
बच जाए हमारे
आनेवाली पिढीयोंके लिए……
प्रभू राजगडकर
११/१२ जाने. २०२३
from WordPress https://ift.tt/CkYJs76
via IFTTT
एक जंगल है
एक जंगल है
आजकल देश विदेश से
लोग बाघ देखने आते है.
कहते है जंगल में
आदिवासीयोंके देवता रहते थे
ताडोबा कहते थे उन्हे
युगोंसे करते आये पुजा
साल में एक बार जत्रा भी लगाते
मिलते-खाते-पिते
आनंद-हर्सोल्हास करते.
एक दिन अचानक यकायक
‘बाघ’ के सुरक्षा का कारन देकर
बंद कर दी जत्रा
खदेड दिया उन आदिवासीयोंको
वहांसे.
कई साल हो गये
जत्रा नही, ताडोबा का दर्शन नही
अब तो ताडोबा भी वहां है के नही
किसे पता !
अगर वह वही होगा तो-
शायद ताडोबासे बाघ ही पुंछते होंगे-
”कहां गये वो लोग….जो तुझे पुजते थे !”
॰॰॰॰
एक और जंगल है
यहां एक उंची पहाडी है
पेड पत्तो झाडीसे लदी हुई
कहते है यहां
आदिवासीयोंके ठाकूर देव बसे है
इस कारन आदिवासी
सदीयोंसे यहां आते है
हरसाल
उत्सव मनाते…नाचते…गाते
जत्रा भी होती है
रातभर रेलां भी होता है
सुना है अब यह भी पहाडी
धीरे धीरे खुदाई कर मिट जाएगी
क्यों की,
यहां से लोहा निकालकर
विकास की गंगा बहाई जाएगी
ऐसा कहते है.
तब ठाकूर देव का घर भी उजड जाएगा!
कहते है
इस साल सीएसआर की फंड से कुछ
और माहोल था.
शायद अगले साल-
ठाकूर देव को पहाडी से उतारकर
नीचे भव्य मंदिर होगा
साथ मे धरमशाला-डीजे के साथ नाच गाना
और बहुत कुछ मिलेगा
ऐसा कुछ लोग कह रहे थे.
अगले साल …..और फिर
उसके अगले साल..
धुल- मिट्टी
शायद शेष बचा हुआ पहाड
उजडे हुए जंगल के साथ
ठाकूर देव मिलने आयेगे हमसे
तब हमारे गांव…हमारी खेती
हमारे चेहरे सब बदले होंगे
शायद धुल मिट्टी की चादर ओढे होंगे.
चलो
जंगल -पानी- गांव
बचानेके लिए.
शायद
शेष बाकी बची हुई पहाडीयां -जंगल-बहता पानी
बच जाए हमारे
आनेवाली पिढीयोंके लिए……
प्रभू राजगडकर
११/१२ जाने. २०२३
0 Comments